तीन तरह का मौन या शांती सम्भव है।
पहला है ध्वनि का ना होना, भौतिक रुप से आवाज का नहीं होना या मुहँ से नहीं बोलना।
दूसरा है मन में विचारों का प्रवाह कम हो जाना, या नकारात्मक, निराशावादी विचारों में नहीं उलझना।
और तीसरी तरह का मौन या शांती है, विश्रांती, जो मेरा स्वरूप है। जहां कोई उथल पुथल नहीं है, केवल होनापन है, जिसको कुछ छू नहीं सकता है, जो निर्गुण है। पर जो 'है' यह निश्चित रूप से जाना जाता है। इसका क्या प्रमाण है?, वो ढूंढने से भी नहीं मिलेगा क्योंकि वह निर्गुण है, तो प्रमाण कहां से आयेगा।
यह मौन सर्वदा है, स्वप्रकाशित है, स्वप्रमाणित है, निर्मल है, अनंत है, और उसे कहीं और ढूंढने मत चले जाना, वह तुम ही हो, वह मैं ही हूँ। मैं अपने आप को कहां ढूंढू, जो ढूंढ रहा है वही तो मैं हूँ।
होता क्या है कि कुछ लोग बोलना बंद कर देते हैं कि मौन व्रत है। जो कि अच्छा है, बेकार की बातों में क्यों ऊर्जा नष्ट करना, और यह मन को शांत करने में सहायक भी है। लेकिन यदि बोल तो नहीं रहे हैं, पर अंदर उद्वेग भरा हुआ है, तो यह तो मौन नहीं हुआ। यह तो ऐसा हुआ कि घर में आग लगी हुई है और बगीचे में पानी डाल रहे हैं उसे बुझाने के लिए।
कुछ लोग विचारों को बंद करने में लगे हैं, कि चित्त वृत्ति निरोध करना साधना है। चित्त वृत्ति को प्रयास से बंद नहीं किया जा सकता है। और क्यों बंद करना चाहते हो चित्त वृत्ति को, फिर तो जड़ता ही रह जायेगी, उसका क्या फायदा। चित्त को अपना काम करने दें, उसे भी स्वीकार कर लें, और अपने मौन एवम शांत स्वरूप में स्थित रहें।
मौन भी नहीं हैं और शांत भी नहीं, यह तो बिलकुल सही नहीं कहा जा सकता है। मौन हैं पर मन में शांती नहीं, ऐसा मौन किस काम का। और यदि मौन हैं और शांत भी तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन शांति को मौन पर निर्भर ना होने दें। पर यदि आंतरिक रुप से मौन और विश्रांती है, फिर बाहर चाहे कितनी भी अशांति हो, तो कृपा बरस रही है और पात्र भी सीधा है।
जो यह पढ़ रहा है, वही ब्रह्मं है, वही शांत है, वही मौन है। शांत होना नहीं है, मौन होना नहीं है, वो आपका स्वरूप है, वो हुआ नहीं जा सकता है, वो पहले से ही पूर्ण मौन है, साक्षी है और परम विश्रांती में है।
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अति उत्तम।
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हटाएंबहुत खूब और बहुत धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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Bhut uchh koti ka gyan aap ne diya h,lakin atmn ko na atmgyan ki avsyakta h or na barahmgyan ki.ye sab maya ka khel chl rha h.Abhi aap ke chit me gyan h toh bhi atmn darsta h or agyan h toh bhi atmn darsta h.kripa batiye ki phir gyan parsar ki kya avsyakta h? Kyonki barahm ko kisi gyan ki avsyakta nahi or chit ko gyan hoskta nahi 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने।
हटाएंदेखिये अब खाली समय में क्या किया जा सकता है। तो जैसे मुझे लाभ हुआ किसी अन्य के द्वारा अज्ञान का नाश करने में, तो यदि कोई और भ्रम में जी रहा है तो उसका भला हो तो अच्छा है। जब तक अज्ञान है तब तक वो नहीं समझ आयेगा जो आपने लिखा है।
आपको भी आत्मज्ञान किसी ना किसी सहारे या माध्यम के द्वारा ही हुआ होगा। यह सब तो एक संकेत मात्र है, एक खेल है, तो उसका आनंद लीजिये। और यदि कोई और भी लाभान्वित हो रहा है तो अच्छा है। जब तक किसी को हानि ना हो और आपको वो करने में आनंद आ रहा है तो वो करना उचित रहेगा।
अपने स्वरूप में स्थित रहकर वही करना अच्छा है जो सबसे प्रिय है।
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Bhut achha jawab diya aap ne.Me sirf ye puchhna chata hun ki darsta ki koi ichha nahi h or mujhe ye gyan hogya ki me darsta hun,phir bhi subh or asubh ichha kyon parkat hoti rhti h,chahe vah dushre ke kalyan ki hi ichha ho.iska matlab abhi chit me agyan bacha h ya chit puri tarah sudh nahi hua h.kripa samadhan kre
हटाएंदेखिये जो ज्ञानी हैं वो किस उपलक्ष्य से कुछ करते हैं ये वो ही जानते हैं।
जवाब देंहटाएंयदि आपको ज्ञान हो गया है कि आप ही दृष्टा हैं तो आप शुभ अशुभ सभी इच्छाओं के भी दृष्टा ही हैं। शुभ अशुभ इच्छा का प्रकट या अप्रकट होना स्वाभाविक है। उनके होने या अभाव में आप शुद्ध चैतन्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, आप तो दृष्टा ही रहे।
शुद्ध चित्त में इच्छायें आनी बंद हो जाती हैं, ऐसा नहीं है, पर उन इच्छाओं के प्रकट होने पर आप क्या करते हैं यह स्वतंत्रता आ जाती है। यदि इच्छा रखनी ही है तो शुभेच्छा रखें और अन्त में कोई इच्छा मेरी नहीं है, जब यह समझ आ जाता है तो उसी क्षण आप मुक्त हैं यह जान जायेंगे।