मैं हूँ, तुम हो, और कोई नहीं;
मैं भी नहीं, तुम भी नहीं, कुछ है ही नहीं।
कहां से शुरू, कहां पर खत्म, कुछ पता ही नहीं;
ना ये शुरू, ना ही खत्म, कुछ हुआ ही नहीं।
क्या खोया, क्या पाया, सोचा ही नहीं;
तुम क्या मिले, सब कुछ खोकर, सब कुछ पाया, मैं रहा ही नहीं।
हे सद्गुरु तुमको नमन!
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