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रविवार, 5 सितंबर 2021

नमन

मैं हूँ, तुम हो, और कोई नहीं;

मैं भी नहीं, तुम भी नहीं, कुछ है ही नहीं।


कहां से शुरू, कहां पर खत्म, कुछ पता ही नहीं;

ना ये शुरू, ना ही खत्म, कुछ हुआ ही नहीं।


क्या खोया, क्या पाया, सोचा ही नहीं;

तुम क्या मिले, सब कुछ खोकर, सब कुछ पाया, मैं रहा ही नहीं।


हे सद्गुरु तुमको नमन!


🙏🙏🙏

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