यह वस्तुयें, शरीर, मन, विचार, इच्छायें, वासनायें, भावनायें आदि मेरा कुछ नहीं है।
मेरा होने के लिए दो होना आवश्यक है। यह सब मेरा नहीं है, यह सभी भी मैं ही हूँ। दो नहीं हैं, केवल अद्वैत ही है।
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