सोमवार, 29 मार्च 2021

जागृत और स्वप्न की तुलना।


यदि किसी क्रिया को बार बार दोहराने से एक ही तरह के परिणाम आते हैं तो उनको हम नियम कह देते हैं।


भौतिक जगत में कई नियम दिखते हैं जो की विज्ञान ने समय समय पर सिद्ध किये हैं जैसे न्यूटन के गति के नियम, गुरुत्वाकर्षण का नियम, ऊर्जा का संरक्षण, थर्मोडायनामिक्स के नियम, सापेक्षता का सिद्धांत आदि।


नई खोज और प्रयोगों के बाद वैज्ञानिक कुछ नये नियम बना देते हैं और कुछ पुराने नियमों में बदलाव होता रहता है।


अध्यात्मिक दृष्टि से, जो भी जाना जा रहा है या जाना जा सकता है, वह माया है। माया यानी जो है ही नहीं, या जो मिथ्यात्मक है यानि जो जैसा दिखता है वो वैसा नहीं है। इस परिभाषा से तो माया में कोई भी नियम सम्भव है, कोई भी नियम बनाया जा सकता है, या फिर कोई भी नियम सत्य नहीं है।


अब थोड़ा विचार करते हैं कि जागृत और स्वप्न में क्या नियम हैं या इनमें क्या समानता या भिन्नता है:


- सभी वस्तुएं अस्थायी हैं, केवल बदलाव की गति का भेद है।


- दृष्टा या जो अनुभव को देख रहा है, वो एक ही है, दो नहीं है।


- जागृत अवस्था में भौतिक वस्तुएं सुख दुख देती हुई प्रतीत होती हैं, स्वप्न अवस्था में स्वप्न वस्तुएं सुख दुख देती हुई प्रतीत होती हैं।


- जितनी देर वह अवस्था रहती है उतनी देर वह सत्य ही प्रतीत होती है।


- स्वप्न चरित्र और जागृत चरित्र एक ही दृश्य देखते हैं और उसपर सवाल नहीं उठाते हैं की यह एक समान कैसे है।


- जागृत वस्तुएं स्वप्न में काम नहीं आती हैं, और स्वप्न वस्तुएं जागृत अवस्था में बेकार हैं।


- स्वप्न अवस्था में जीव स्मृति अनुभव में आती है और यह अनुभव चित्त पर प्रभाव छोड़ते हैं। जागृत अवस्था में सामूहिक स्मृति अनुभव में आती है और यह अनुभव चित्त पर प्रभाव छोड़ते हैं। स्मृति में सभी भेद काल्पनिक हैं।


- दोनों अवस्थाओं में समय, स्थान, वस्तुयें, घटनायें, सुख दुख, जगत, कर्ता भाव, व्यक्तित्व आदि सभी कुछ काल्पनिक हैं।


- दोनों में दृष्टा ही दृश्य है और दृश्य स्वयं दृष्टा है। दोनों अवस्थाओं में मैं स्वयं ही स्वयं का दर्शन कर रहा हूँ।


- स्वप्न से जागने पर या जागृत से जागने पर, दृष्टा दृश्य एक ही हैं यानि केवल अद्वैत ही है, यह प्रत्यक्ष दिखता है।


- दोनों अवस्थाओं में एक ही प्रक्रिया चल रही है, कुछ अनुभव किया जा रहा है और कोई अनुभव कर रहा है। 


- दोनों अवस्थाओं में साक्षी कौन है, यह जानना सम्भव नहीं है, यानि साक्षी अज्ञेय है। और दृश्य का तत्व क्या है, यह भी अज्ञेय है।


- जागृत अवस्था के अनुभव स्वप्न में मिथ्या हैं, स्वप्न के अनुभव जागृत अवस्था में मिथ्या हैं। 


- दोनों अवस्थाओं से जागने पर पता चलता है कि या तो मैं ही सब कुछ हूँ या मैं कुछ भी नहीं हूँ।


इस तरह से विचार करने पर, जागृत और स्वप्न में अनेक समानतायें दिखती हैं, और कोई भेद प्रतीत नहीं होता है। केवल परिवर्तन की गति भिन्न है।


जैसे जो जागृत में बार बार हमारे अनुभव में आता है उसे हम नियम मान लेते हैं, वैसे ही जो स्वप्न में जो अनुभव में आता है उसे हम स्वप्न में सत्य मान लेते हैं, उसपर सवाल नहीं उठाते हैं।


यदि मेरी सत्य की परिभाषा है की जो अनुभव में है, वही सत्य है, तो जागृत या स्वप्न में से, कौनसा अनुभव सत्य है? और जागृत अवस्था के अनुभवों को स्वप्न अवस्था के अनुभवों से अधिक सत्य किस आधार पर माना जा सकता है? क्या स्वप्न भी उतना ही सत्य नहीं है, जितनी जागृत मिथ्या है?


जागृत से जाग जायें, तो जागृत भी स्वप्न है और स्वप्न भी जागृत है। जागृत में यदि नहीं जागे तो जागृत अवस्था भी यंत्रवत चलती है स्वप्न की तरह से। और यदि जागृत में चेतना स्थिर होने लगी है तो स्वप्न भी जागृत है। इसलिये कहते हैं ज्ञानी या योगी कभी सोता नहीं है और संसारी कभी जागृत नहीं है।


यह जानकर, तीनों अवस्थाओं से परे, अपने चैतन्य स्वरूप में आनंद पूर्वक स्थित रहें।


प्रणाम।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें