रविवार, 3 अप्रैल 2022

कभी वो भी सुनता, जो कोई ना कहता।

जो ना कहता, और ना सुनता,

वही है कहता, वही है सुनता।

जो ना आता, और ना जाता,

वही है आता, वही है जाता।


मैं ना सोता, मैं ना जागा,

मैं ही सोता, मैं ही जागा।

मैं ना खोता, मैं ना पाता,

मैं ही खोता, मैं ही पाता।


जिसने है जाना, वो ना कहता,

जो है कहता, उसने ना जाना।

गुरू है कहता, शिष्य है सुनता,

कभी वो भी सुनता, जो कोई ना कहता।


9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह गुरु जी सुंदर कविता है 👍👍
    धन्यवाद🌺🌺🙏🙏

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  2. अति सुन्दर भाव व्यक्त किए हैं आपने अश्विन जी ।
    🙏🙏🌹🌹

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  3. दो पद्य अति सुंदर। अंतिम पद्य में द्वंद्व है। जिसने जान लिया वो कहता नहीं। गुरू कह रहा है तो क्या गुरू देव ने जाना नहीं। अद्वैत में सब भेद समाप्त हो जाते हैं।

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    1. तत्व को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। गुरू सत्य की तरफ संकेत करते हैं, मौन तोड़ते हैं कि साधक मौन हो जाए।

      वैसे ये काव्यात्मक रूप में कहा गया है।

      🙏🙏🙏

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