मुक्ति ढूंढने से नहीं मिलेगी,
मुक्ति ढूंढे बिना भी नहीं मिलेगी।
केवल देखना मात्र है, जैसा है उसे वैसा ही केवल देखा जा रहा है। उसको बदलना नहीं है, उसे पाना नहीं है, कोई पूर्वाग्रह नहीं है, कोई नाम नहीं देना है, कोई ज्ञान नहीं प्राप्त करना है।
जो ना कहता, और ना सुनता,
वही है कहता, वही है सुनता।
जो ना आता, और ना जाता,
वही है आता, वही है जाता।
'मैं साक्षी हूं', यह जानना चेतना है। पर यह भी कौन जान रहा है, उसको ढूंढो तो आप स्वयं ही साक्षी हो, इसमें कोई संशय नहीं रह जायेगा।
जो मुक्त है, यानी साक्षी या अनुभव को जानने वाला, वो सदा मुक्त ही है, वो कभी बंधन में था ही नहीं।
समर्पण क्या है?
समर्पण का अर्थ है सम + अर्पण। जो कुछ भी मैंनें अपने आप को मान लिया है, वो सब कुछ अर्पण कर देना, समर्पण है। अपना अज्ञान, मान्यताओं, पूर्वाग्रह, मतारोपण आदि का त्याग समर्पण है। अपने स्वरूप में समता पूर्वक स्थिति समर्पण है।
आप पहले से ही अपने घर पर हैं, अब कहां जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष को भी समाप्त करने का संघर्ष मत करो, वो भी निरर्थक ही होगा।