जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्था में, यानि चित्त की सभी अवस्थाओं पर सम्पूर्ण नियंत्रण पाना अध्यात्मिक मार्ग का लक्ष्य है। ऐसा होते ही 'तदा दृष्टा स्वरूपे अवस्थानम', यानि 'मैं' अपने ही साक्षी स्वरूप में स्थित हो जाता है, और जीवन एक लीला की तरह प्रतीत होने लगता है। यही आत्म बोध है।
आपकी तरह, मैं भी ज्ञान मार्ग पर चलने वाला एक साधक हूँ। यदि आप यह पढ़ रहे हैं तो यह तो निश्चित है कि आप भी ज्ञान में रुचि रखते हैं।
यह ब्लॉग और लेख इसलिये हैं कि कहीं किसीका कुछ अज्ञान नाश हो जाये, कुछ प्रकाश फैले और मैं भी अपने बंधुओं से कुछ सीख सकूं।
अंधेरे को कोसने से अच्छा है, कि एक दिया जला लें।
ज्ञान के प्रकाश से, सभी के जीवन में दुख की मिथ्या का पूरी तरह नाश हो, ऐसी मेरी मंगल कामना है।
अश्विन
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