जगत सत्य ही तो है, उसीमें तो यह शरीर है, यदि शरीर ही नहीं रहेगा तो मैं भी नहीं रहूँगा। इस तरह की कई मान्यतायें हो सकती हैं, पर जैसा हमने पहले लेखों में देखा की इनको इतनी आसानी से स्थापित नहीं किया जा सकता है। बल्कि मनन करने पर तो कुछ और ही तथ्य उभरते हैं।
यदि कोई कहता है कि जगत मिथ्या है, तो उससे भी पूछना चाहिये कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? केवल किसी के कहने पर उसे स्वीकार ना करें। यदि उत्तर मिलता है कि यह सत्य है क्योंकि यह किसी शास्त्र में लिखा है, तो थोड़ा सावधान हो जायें। पूछें, पर आपका क्या अनुभव है और यह कैसे तार्किक है? यदि फिर भी संतोषजनक उत्तर नहीं मिले तो कहीं और उत्तर ढूंढना जरूरी है।