रविवार, 28 फ़रवरी 2021

जगत सत्य है या मिथ्या है?

जगत सत्य ही तो है, उसीमें तो यह शरीर है, यदि शरीर ही नहीं रहेगा तो मैं भी नहीं रहूँगा। इस तरह की कई मान्यतायें हो सकती हैं, पर जैसा हमने पहले लेखों में देखा की इनको इतनी आसानी से स्थापित नहीं किया जा सकता है। बल्कि मनन करने पर तो कुछ और ही तथ्य उभरते हैं।


यदि कोई कहता है कि जगत मिथ्या है, तो उससे भी पूछना चाहिये कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? केवल किसी के कहने पर उसे स्वीकार ना करें। यदि उत्तर मिलता है कि यह सत्य है क्योंकि यह किसी शास्त्र में लिखा है, तो थोड़ा सावधान हो जायें। पूछें, पर आपका क्या अनुभव है और यह कैसे तार्किक है? यदि फिर भी संतोषजनक उत्तर नहीं मिले तो कहीं और उत्तर ढूंढना जरूरी है।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

नित्य अनित्य विवेक।

यह जगत जिसको हम सत्य मान बैठे हैं, क्या वह वाकई सत्य है? क्या यह नित्य है?


कहीं यह हमारी मान्यता तो नहीं हैं कि, जागृत अवस्था सत्य है, जगत सत्य है, मैं तो आता जाता रहता हूँ, जगत तो तब भी था जब मैं नहीं था या जब मैं नहीं रहूँगा आदि आदि।


क्या यह मान्यतायें सही हैं, क्या इन धारणाओं में कुछ भूल तो नहीं है? 


थोड़ा सा मनन करने पर एक बिल्कुल भिन्न तथ्य उभरता है। यह सभी दृष्टिकोण तभी तक सही हैं जब तक हमने अपने आप को यह शरीर या मन मान लिया है। पर क्या मैं वाकई शरीर या मन हूँ? 

शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

अध्यात्म में क्या मिलेगा?

अध्यात्म में क्या मिलेगा? आखिर क्यों करूं में अपने स्वरूप की खोज?


जब हम अध्यात्म में रुचि लेते हैं तो सबसे पहले यही सोचते हैं, यहां मुझे क्या मिलेगा? यह सवाल इसलिये उठता है, क्योंकि अभी तक संसार में यही सीखा है, कि प्रयत्न मैं तभी करूंगा जब बदले में कुछ मिले। और यह धारणा इतनी गहरी बैठ गई है कि साधना भी इसलिये करते हैं कि मुझे कुछ मिले, फिर चाहे वह सांसारिक हो या मानसिक या अध्यात्मिक। हम अध्यात्म में भी प्रतियोगिता करने लगते हैं!!


इसमें बड़ी भूल है। अध्यात्म में कुछ मिलेगा नहीं, बल्कि जो है वह भी छूट जायेगा, जैसे झूठी मान्यतायें, सुख से आसक्ति, दुख से दूर भागने की प्रवृत्ति, आवेग या अचेतना में किये गये कर्म, कर्ता भाव आदि।

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

आध्यात्मिक मार्ग की शुरुआत

आध्यात्मिक मार्ग की शुरुआत कहां से करूं?



यह प्रश्न नये साधक के मन में आना स्वाभाविक ही है। ऐसा इसलिये है क्योंकि विभिन्न माध्यमों जैसे पुस्तकों, नेट, प्रवचनों आदि में इतनी सूचना है, की उसमें तत्व को ढूंढना ऐसा है जैसे भूसे के ढेर में सुईं को ढूंढना।



तो उपाय क्या है? कैसे मैं सत्य को असत्य से अलग करके देख सकता हूँ? कैसे दूध का दूध और पानी का पानी किया जाये? बल्कि यह कहना उचित है कि कैसे पानी में से दूध को अलग किया जाये?