जो प्राप्त हुआ है, या हो सकता है, वो अभी भी अप्राप्त के लिए अप्राप्त ही है।
प्राप्त से अप्राप्त को नहीं पाया जा सकता है,अप्राप्त प्राप्त में भी अप्राप्त ही है।
आत्मतत्त्व अप्राप्त में भी प्राप्त है, और प्राप्त में भी अप्राप्त है।
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