जागृत में मैं कुछ हूं, लेकिन कुछ नहीं भी हूं।
स्वप्न में जो कुछ भी है वो मैं ही हूं, लेकिन ये तभी जानता हूं जब स्वप्न समाप्त हो जाता है।
सुषुप्ति में मैं कुछ नहीं हूं, लेकिन ये तभी जानता हूं जब सुषुप्ति नहीं रही।
सभी अवस्थाओं में जो निर्लिप्त है वो मैं हूं, और सभी अवस्थाओं में जो लिप्त है वो मैं नहीं हूं, ऐसा भी नहीं है।
जो सबमें बहता है वो मुझसे भिन्न है, पर जो सबमें बहता है वो मुझसे अभिन्न ही है।
अब कौन कहे और कौन कुछ सुने, ना किसी ने अभी तक कुछ कहा, ना किसी ने कुछ सुना। जिसने कहा या सुना वो मैं नहीं था, लेकिन जिसने कहा या सुना वो मुझसे भिन्न भी नहीं था।
सब कुछ कहते हुए भी जो सदा चुप ही रहा, सब कुछ सुनते हुए भी जो कुछ ना सुन सका, वो मैं ही तो हूं।
सभी अवस्थाएं मुझसे हैं मैं अवस्थाओं से नहीं, लेकिन अवस्थाओं से भिन्न मैं कुछ अन्य भी तो नहीं।
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