बुद्धि ही बंधन का कारण है, और बुद्धि ही मुक्ति का माध्यम भी है।
जो दृश्य है उसमें से मैं कुछ हूं, कोई विशेष उपकरण या दृश्य मैं हूं, ये मान्यता बंधन है।
सभी दृश्य मैं ही हूं, जो अदृश्य है वो भी मैं ही हूं, इसमें अभिन्नता, अखंडता एवम निश्चलता, तत्क्षण मुक्ति है। फिर मुक्ति में विलम्ब कहां।
पतंजलि ने भी कहा है:
तद (अविद्या) अभावात् संयोगभावः हानं तत् दृश्यः कैवल्यम्॥२- २५॥
जब अविद्या का अभाव होता है, तो दृष्टा दृश्य के संयोग का जो अज्ञान है उसका नाश हो जाता है, तब जो दृश्य है वही कैवल्य, वही अद्वैत, वही मुक्ति है।
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